सशक्तिकरण के भारतीय संदर्भ
Keywords:
स्पष्टता, स्त्रीवादी आंदोलन, स्त्री-मुक्ति, परंपरा, फ्रांसीसी क्रांति, नैतिकताAbstract
नारी सशक्तिकरण वर्तमान दुनिया का बेहद जरूरी विमर्श है। चूंकि यह नारी की स्वतंत्रता, समानता, मजबूती और महत्ता का हिमायती है, इसलिए इसे सम्पूर्ण मानव जाति के आधे हिस्से की बेहतरी से जुड़ा विमर्श कहा जा सकता है। यूरोप में इसकी शुरुआत कोई दो शताब्दी पूर्व हुई, जब 1792 में मेरी बोल्स्टन क्राफ्ट की पुस्तक ‘द विन्डिक्शन आॅफ द राइट्स आफ विमेन’ का प्रकाशन हुआ। इससे पहली बार मेरी ने फ्रांस क्रान्ति से प्रभावित होकर ‘स्वतंत्रता-समानता-मातृत्व’ के सिद्धान्त को स्त्री समुदाय पर भी लागू करने की मांग की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि कोई भी समतावादी सामाजिक दर्शन तब तक वास्तविक अर्थों में समतावादी नहीं हो सकता जब तक कि वह स्त्रियों को समान अधिकार और अवसर देने तथा उनकी हिफाजत करने की हिमायत नहीं करता। इसलिए मेरी बोल्स्टन क्राफ्ट को स्त्री मुक्ति का आदि सिद्धान्तकर माना जाता है। बाद में स्त्री की मुक्ति की इस वकालत जाॅन स्टुअर्ट गिल ने 1869 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘द सब्जेकशन आॅफ विमेन’ में की, जिसे और मजबूत स्वर मिला 1949 मंे प्रकाशित पुस्तक ‘द सेकण्ड सेम्स से। इन सबके सम्मिलित एवं निरन्तर प्रयास से ही यूरोप में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान शुरू हुआ संगठित स्त्रीवादी आंदोलन सघन और व्यापक रूप ले सका।
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