प्रवासी जीवनः साहित्यिक और सांस्कृतिक संकट (नीदरलैण्ड्स के सन्दर्भ में)

Authors

  • डा0 राममेहर सिंह सह-प्रोफेसर, हिन्दी-विभाग छोटूराम किसान स्नातकोत्तर ,महाविद्यालय,जीन्द।

Keywords:

हिंदी प्रचार संस्था, भारतीय दूतावास, साहित्य-सृजन, प्रचार-प्रसार, विश्व हिन्दी लेखन

Abstract

विश्व हिन्दी लेखन का एक प्रवासी परिप्रेक्ष्य है, जो बहु आयामी है और जिसका विशेष अन्तर्राष्ट्रीय महत्व है। वर्ष 2004 में जब यूरोप हिंदी समिति का द हेग में पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी कवि सम्मेलन ‘कांग्रेस खबाओ’ (भवन) में हुआ तो उसमें दो ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत में हिंदी के विकास में राजनीतिक दाव-पेंचों के प्रभाव को अनुभव ही नहीं किया अपितु उसकी वृद्धि में ऐसे-ऐसे कवचों को ढूँढ़ा, जिससे उसके प्रचार-प्रसार और सृजनात्मक रचना में कोई अवरोध न हो। वे व्यक्ति थे-पं. विद्यानिवास मिश्र, जिसकी अध्यक्षता में यह कवि सम्मेलन हुआ था और दूसरे थे, श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, जो कवि होने के साथ राजनीतिक नेता भी थे। इन दोनों के साथ डाॅ. लक्ष्मी मल्ल सिंधवी भी यूरोप हिंदी समिति के संरक्षक थे। इस कवि सम्मेलन में नीदरलैंडस के सभी संस्थाओं के प्रतिनिधित्व था, जैसे हिंदी परिषद्, हिंदी प्रचार संस्था, लायडन विश्वविद्यालय, हिंदू स्कूल संस्थाएं, हिंदू ब्राडकास्टिंग काॅरपोरेशन (ओहम्), डच हिंदी समिति, एस.एल.’एस. (लाडयन) की बहुत सी सांस्कृति संस्थाएं, गोपिओ इंटरनेशनल, सनातन एवं आर्यसमाजी संस्थाएं और भारतीय दूतावास। जैसे कि हिंदी स्वभाव से ही सबको एकता के सूत्र में बाँधती आई है, यूरोप हिंदी समिति का लक्ष्य यही था कि ये संस्थाएं आपस में, कितनी ही भिन्न क्यों न हो, पर साहित्य-सृजन और प्रचार-प्रसार में मिल-जुलकर काम करें और हुआ भी ऐसा।

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NA

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Published

30-09-2015

How to Cite

डा0 राममेहर सिंह. (2015). प्रवासी जीवनः साहित्यिक और सांस्कृतिक संकट (नीदरलैण्ड्स के सन्दर्भ में). International Journal for Research Publication and Seminar, 6(4). Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/652

Issue

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Original Research Article