समकालीन नवगीतः आधुनिक परिप्रेक्ष्य में

Authors

  • डा0 राममेहर सिंह सह-प्रोफेसर, हिन्दी-विभाग छोटूराम किसान स्नातकोत्तर ,महाविद्यालय,जीन्द।

Keywords:

यथार्थ, लयात्मकता, मुखरित, नवगीतों

Abstract

नवगीत का प्रारम्भ परम्परागत गीत का विकास ही है। नई कविता के समान ही गीतों को नवगीत की संज्ञा मिली। हिन्दी में इसका विशेष महत्व है। नवगीत के समकालीन स्वरूप में नई कविता के सारे गुण मिलते हैं, चाहे कथ्य की दृष्टि से परखें या भाषा-शिल्प की दृष्टि से। गीतों की प्रेम और सौन्दर्य से युक्त रूमानी एवं कल्पनात्मक अभिव्यक्ति के पिष्टयेषण से हटकर यथार्थ तथा समकालीन संवेदना, अनौपचारिक लोकगीतों की लयात्मकता के साथ नवगीत में मुखरित हुई। मानव प्रगति का उपहार अब और अकेलेपन का कारूणिक अभिव्यक्ति इनमें मिलती है। शंभुनाथ सिंह ने नवगीत को अपने देश की जमीन और सामान्य जन से संपृक्त लोकधर्मी, लोकाश्रयी, पूर्णतः बिम्बधर्मी, आँचलिक शब्दों और मुहावरों का प्रयोक्ता कहा। इन नवगीतों में परम्परा के प्रति विद्रोह मिलने के साथ-साथ भाषा शैली की नवीनता भी मिलती है। इनमंे गीत की सहजता, सरलता, लयात्मकता कमोबेश मिलती ही है, वस्तुतः इसीलिए ये गीत हैं। डाॅ’ बच्चन सिंह ने नवगीत के स्वरूप पर टिप्पणी करते हुए कहा है, ‘‘ग्राम गीतों के कुछ टुकड़े, गांव की भाषा, गीतों की लय आदि को पकड़ने की साथ आधुनिकता का रंग भर कर इसे नवगीत कहा जाने लगा। किन्तु नवगीतों की आन्तरिकता का तालमेल नवगीत के साथ नहीं बैठ पाता। नयी कविता ने जिस तरह या जिस सीमा तक अपनी पूर्ववर्ती काव्य-परम्परा से अपने को अलग कर नये कथ्य, नये रूप विन्यास को अपनाया है उस सीमा तक नवगीत अपनी पूर्ववर्ती गीत परम्परा से अपने को नहीं अलगा सका है। अतः प्रयास करने पर भी इसका स्वर आधुनिक नहीं बन पाता, यह प्रेम और प्रकृति के दो छोरों तक सीमित रहकर स्थगित हो गया है।’’1

References

डाॅव्म् बच्चन: आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास, 1986, पृ. 339

डाॅव्म् शांति सुमनः ओ प्रतीक्षित, पृ. 39

रमेश रंजकः हरापन नहीं टूटेगा, पृ. 66

अनूप अशेषः लौट आएंगे सगुन पंछी, पृ. 11

माहेश्वर तिवारी: हरिसिंगार कोई तो हो, पृ. 77

उमाकान्त मालवीयः सुबह रक्त पलाश की , पृ. 50

डाॅ. अनिल कुमार तिवारी ‘मदन’

अनूप अशेषः लौट आएंगे सगुन पंछी, पृ. 21

माहेश्वर तिवारीः हरसिंगार कोई तो हो, पृ.10

हिन्दी साहित्य का इतिहासः डाॅ. बच्चन 1986, पृ. 339

अद्यतन काव्य की प्रवृत्तियां, 2000, पृ. 150

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Published

30-09-2016

How to Cite

डा0 राममेहर सिंह. (2016). समकालीन नवगीतः आधुनिक परिप्रेक्ष्य में. International Journal for Research Publication and Seminar, 7(7), 112–119. Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/948

Issue

Section

Original Research Article