भारत में लिपि का उद्भव एवं विकास (ब्राह्मी के विशेष सन्दर्भ में)
Keywords:
भारत, ब्राह्मी , लिपि , उद्भव , विकासAbstract
जिस प्रकार भावों की सम्यक अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग में आने वाले ध्वनि-समूह को भाषा कहते हैं, उसी प्रकार भाषा (ध्वनि-संकेत) को किसी पटल पर अंकित करने की सम्पूर्ण व्यवस्थित प्रणाली को लिपि कहते हैं। यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि भाषा और लिपि दोनों परस्पर सम्बद्ध होते हुए भी पृथक् हैं। भाषा ध्वनियों की व्यवस्था है और लिपि वर्णों का व्यवस्थित भवरूप है। लिपि भाषा को मूर्त स्थायित्व प्रदान करती है। लिपि के आविष्कार ने मानव की विकास-यात्रा में एक सर्वथा नया आयाम जोड़ दिया। पिछली सदी के महान् खोजकर्ता और भाषाविद् Edward Clodd ने इस सम्बन्ध में अपनी पुस्तक The History of Alphabet में कहा है, "भाषा के आविष्कार ने यदि मानव जाति के लिए बर्बरता से सभ्यता की ओर जाने वाले मार्ग का उद्घाटन किया तो दूसरी ओर लिपि के आविष्कार ने उसके निरन्तर विकास की असीम सम्भावनाओं के द्वार को सदा-सदा के लिए खोल दिया।" इन तथ्यों के आलोक में हम कह सकते हैं कि भाषा का सम्यक विकास तभी सम्भव हुआ, जब उसे नाद-स्वरूप के साथ-साथ दृश्य - स्वरूप भी प्राप्त हुआ। इन दोनों अन्योन्याश्रित सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए प्रख्यात भाषा विज्ञानी डॉ० भोलानाथ तिवारी ने इसे यूँ स्पष्ट किया है, "भाषा की उत्पत्ति भावों को ध्वनियों द्वारा व्यक्त करने के लिए हुई और लिपि की उत्पत्ति उसे चिह्नों या चिन्हों द्वारा प्रकट करने के लिए। कदाचित् यह कार्य भाषा के कुछ विकसित हो जाने के बाद हुआ होगा ।
References
- भोलानाथ तिवारी भाषा विज्ञान, किताब महल, दिल्ली 1951 पृष्ठ 472
- सक्सेना बाबूराम- सामान्य भाषा विज्ञान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग 1983 पृष्ठ 169
-डाॅ0 उदय नारायण तिवारी- हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली 1984 पृष्ठ 547
- चटर्जी डाॅ0 सुनीति कुमार- भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी मुंशीराम मनोहरलाल दिल्ली 1879 पृष्ठ 46
- हिन्दी भाषा का इतिहास डाॅ0 धीरेन्द्र वर्मा हिन्दुस्तानी एकेडमिक प्रयाग 1933 पृष्ठ 84
- प्राचीन भारतीय लिपिमाला डाॅ0 गौरी शंकर हीराचन्द्र ओझा राजस्थानी ग्रंथाकार जोधपुर 1918 पृष्ठ 2
- प्राचीन भारतीय लिपिमाला डाॅ0 गौरी शंकर हीराचन्द्र ओझा राजस्थानी गं्रथाकार जोधपुर 1918 पृष्ठ 18
- प्राचीन भारतीय लिपिमाला डाॅ0 गौरी शंकर हीराचन्द्र ओझा राजस्थानी गं्रथाकार जोधपुर 1918 पृष्ठ 07
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