कालिदासकािीन िोक लिश्वास ि धारणाएँ : लिशेष संदर्भ – अलर्ज्ञानशाकु न्तिम
Keywords:
सामालजक,, धारणा, संस्कार,, मान्यता,Abstract
ककसी र्ी कलि या रचनाकार का कायभ तत्कािीन समाज से प्रर्ालित हुए लिना नहीं रह सकता। यकद ककसी र्ी कलि की रचना, काव्य या िेख समाज में िोकलप्रय है तो यह स्पष्ट है कक िह रचना अपने काि और युग में प्रचलित िोक-लिश्वास ि धार्मभक, सामालजक मान्यताओं का िाहक है। महाकलि कालिदास द्वारा रलचत अलर्ज्ञानशाकु न्तिम नाटक में हमें तत्कािीन समाज के लिश्वासों, धारणाओं और मान्यताओं के दशभन होते हैं। प्रस्तुत शोध िेख के माध्यम से महाकलि कालिदासकृ त अलर्ज्ञानशाकु न्तिम में प्राप्त लििरण द्वारा तत्कािीन िोक-लिश्वास ि सामालजक धारणाओं को प्रकाश में िाने का प्रयास ककया गया है।
References
लद्विेदी आचायभ पं. लशि प्रसाद, अलर्ज्ञानशाकु न्तिम (र्ारतीय लिद्या प्रकाशन, कदल्िी) चतुिेदी, आचायभ सीताराम, लि. सं.-2065. अलर्ज्ञानशाकु न्तिम (कालिदास-ग्रन्थाििी), उिर प्रदेश
संस्कृ त संस्थान, िखनऊ,
लद्विेदी, लशििािक, 2011. अलर्ज्ञानशाकु न्तिम , हंसा प्रकाशन, जयपुर। झा, तारणीश, 1989, अलर्ज्ञानशाकु न्तिम , प्रकाशन कें द्र, िखनऊ।
अलर्ज्ञान शाकु न्तिम 4/1
अलर्ज्ञान शाकु न्तिम 1/16
अलर्ज्ञान शाकु न्तिम 7/13
Downloads
Published
How to Cite
Issue
Section
License
This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Re-users must give appropriate credit, provide a link to the license, and indicate if changes were made. You may do so in any reasonable manner, but not in any way that suggests the licensor endorses you or your use. This license allows for redistribution, commercial and non-commercial, as long as the original work is properly credited.