गीता द्वारा आदर्श व्यक्तित्वक्तिर्ाशण
Keywords:
क्तस्थतप्रज्ञ,, गीता,, ददव्यकर्श,Abstract
गीता एक ऐसी ज्ञािगांगा है, क्तिसकी क्तवचारधारा र्ेंसर्स्त आध्याक्तत्र्क सत्य और उसकी सहि अिुभूक्ततयों की लहरें स्पष्टतः हर्ेंपररलक्तित होती हैं I गीता र्ेंददव्यकर्श, ददव्यज्ञाि, ददव्यभक्ति की क्तिवेणी एक साथ लहराती है। गीता व्यक्ति को परक्तहतकारी बिाती है। इसका परक्तहतव्रत दकसी सीर्ा सेआबद्ध िहीं है, यह तो िाक्तत, धर्श, वणशया वगश-क्तवर्ेष सेपरेप्राक्तणर्ाि तक पहुँचाता है। आसक्ति और वासिा केसाधारण दोषों सेप्रारम्भ कर गीता यह बतलािेका प्रयास करती हैदक क्तित्य-िैक्तर्क्तिक कतशव्यों का पालि करता हआ व्यक्ति दकस प्रकार र्ान्त, तुष्ट, क्तस्थतप्रज्ञ एवांयोगस्थ रहकर अपिे व्यक्तित्व को उन्नत कर सकता है।
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