शाशवत जीवन मूल्य एवं समकालीन जीवन मूल्य : एक अध्ययन

Authors

  • रोहताश शोधकताा

Keywords:

प्रगतिशील, परिस्थितियों, शाश्वत, अनुप्राणित

Abstract


भारतीय दर्शन की दृष्टि से शाश्वत मूल्यों का स्थान सर्वोच्च रहा है। किसी भी साहित्य का अवलोकन करें तो प्राचीन काल से लेकर आध्ुनिक काल तक सम्पूर्ण साहित्य शाश्वत मूल्यों से अनुप्राणित है। मानव समाज को उत्तरोत्तर गति प्रदान करनेमें इन मूल्यों की अहम् भूमिका रही है। इन मूल्यों के अनुसरण के कारण ही उत्कृष्टचिंतन और आदर्श कर्तव्य की दिशा में मनुष्य को अग्रगामी एवं प्रगतिशील बनने मेंकापफी सहायता मिली है। हमको अपने अतीत की विरासत में मिले हैं। ये किसी विशेषवर्ग सम्प्रदाय के न होकर समस्त मानवता को विकसित करते हैं। डाॅ. हुकुमचन्दराजपाल मूल्यों की शाश्वत्ता को स्वीकारते हुए कहते हैं-फ्वह ‘जीवन-मूल्य’ ही क्या जो परिस्थितियों के कारण नष्ट हो जाए?हाँ, इसके स्वरूप में थोड़ा बहुत परिवर्तन हो सकता है। वस्तुतः जीवन मूल्य यदिवास्तविकता में वे जीवन के मूल्य हैं तो उन्हें प्राचीनता एवं नवीनता की सीमा मेंबांध ही नहीं जा सकता। जीवन की तरह जीवन-मूल्य भी शाश्वत हैं। इनके अनुसार जो मूल्य शाश्वत हैं वह सदैव ही शाश्वत रहते हैं। उनमें परिवर्तनशीलता कभी नहीं आती है, जो मूल्य परिस्थितियों के कारण नष्ट हो जाये वह मूल्य ही नहीं है ये तो सदैव कालजयी रहते हैं। एक अन्य विद्वान ने भी कहा है- मानवीय समता, न्याय, ( प्रेम,सहानुभूति, आस्था जैसे चिरन्तन मूल्यों को लेकर चलने वाले ध्र्म ही वास्तविक है, अन्य प्रतीयमान और छलावा है। ध्र्म की धरणा एक व्यापक धरणा रही है, जिसके अंतर्गत आर्थिक, सामाजिक, नैतिक अर्थ मात्रा के मूल्य भी अंतर्भुक्त रहे हैं।

References

भारती धमावीर चाँद और टूटे हुए लोग भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली 1998

भारती धमावीर बन्द गली का आखिरी मकान भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नयी दिल्ली,

भारती धमावीर गुनाहों का देवता भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, बाइसवां संस्करण

भारती धमावीर सूरज का सातवां घोड़ा भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली

भारती धमावीर ग्यारह सपनों का देश सं. लक्ष्मीचन्द्र जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, पुनर्नवा संस्करण

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Published

30-06-2016

How to Cite

रोहताश. (2016). शाशवत जीवन मूल्य एवं समकालीन जीवन मूल्य : एक अध्ययन. International Journal for Research Publication and Seminar, 7(3). Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/831

Issue

Section

Original Research Article