समकालीन हिन्दी कहानी में गैर-दलितों का दलित-विषयक लेखन और उसका समाज पर प्रभाव

Authors

  • योगिता रानी OPJS University Churu”

Keywords:

शासन-प्रशासन, प्रतिनिधित्व, वैधानिक अधिकार, मुसलमान, मुस्लिम नेतृत्व, ब्रिटीशकालीन

Abstract

दलित वर्ग की ऐतिहासिकता की चर्चा करने से पहले इस वर्ग में आने वाली जातीय समूहों की पहचान करनी आवश्यक है। इस वर्ग से मेरा तात्पर्य भारतीय समाज के उन जातीय समूहो से है जो वर्णाश्रम व्यवस्था से बाहर है। इस तरह इस वर्ग के अंतर्गत अछूत और आदिवासी ही नहीं, बल्कि इन दो समूहों से अन्य धर्मों में धर्मांतरित लोग जैसे, दलित-मुस्लिम, दलित इसाई, दलित बौद्व और दलित-सिक्ख आते है। वर्णाश्रम व्यवस्था से बाहर होने का अर्थ है हिंदू धर्म से बाहर होना। पर इस दृष्टिकोण को और सही ढंग से समझने के लिए संक्षेप में इसकी व्याख्या आवश्यक है। इससे बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाएगी। ब्रिटीशकालीन मुस्लिम नेतृत्व सरकार से अपने लिए कुछ पृथक वैधानिक अधिकारों की मांग कर रहा था, ताकि हिंदू बहुल देश में उसके हित सुरक्षित रह सकें। इस प्रक्रिया में मुसलमानों ने आगा खां के नेतृत्व में वायसराय लार्ड मिन्टों से विधान मण्डल, कार्यपालिका और सरकारी नौकरियों में पर्याप्त और पृथक प्रतिनिधित्व की मांग की। इस संदर्भ में आगा खां का तर्क था कि देश में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की तुलना में मुसलमानों की संख्या अधिक है। इसलिए उनके हितों की रक्षा सुनिश्चित की जानी आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। इस जनसंख्या का महत्व उस समय और भी बढ़ जाता है  समस्त हिंदुओं की जनसंख्या में से उन लोगों का निकाल दिया जाए जो अपने आपको हिंदू नहीं मानते तो ऐसी स्थिति में मुसलमानों की संख्या शेष हिंदुओं की तुलना में पर्याप्त है। 

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Published

30-09-2017

How to Cite

योगिता रानी. (2017). समकालीन हिन्दी कहानी में गैर-दलितों का दलित-विषयक लेखन और उसका समाज पर प्रभाव. International Journal for Research Publication and Seminar, 8(7), 126–130. Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1234

Issue

Section

Original Research Article