समाज में स्त्री: संस्थाएँ, मान्यताएँ और मूल्य, परम्परा और नई चेतना का द्वन्द, स्त्री का राजनीतिक अस्तित्व

Authors

  • Suman Bala Research scholor OPJS University Churu

Keywords:

प्रसाद या वेदवाक्य, सामाजिक और धार्मिक, भौतिक सौंदर्य, स्त्री-मुक्ति, संघर्ष

Abstract

हजारों वर्षों से पुरूष निर्मित इस समाज में ‘नारी’ और ‘मुक्ति’ नदी के दो किनारों की भांति ही रहे हैं, समय की धारा में किसी-किसी मोड़ पर यह एहसास जरूर हुआ, कि वह सामाजिक बंधनों एवम् मिथकों को तोड़कर मुक्त हो जाएगी, लेकिन यह एहसास बिखर गया, मिथक खत्म नहीं हुआ हां इतना अवश्य हुआ कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने समय की मांग की अनुकूल नए मिथक गढ़े, निरंतर जारी इस प्रक्रिया या साजिश को हम भारतीय समाज में नारी की स्थिति का मूल्यांकन करके बखूबी समझ सकते हैं, क्योंकि यही वह देश है, ंजहां आदिम सभ्यता की धरोहर या अवशेष के रूप में कबीलाई, आदिवासी, बनजारे लोग हैं, (हालांकि ‘सुनामी’ में कुछ जनजातियों के विलुप्त होने की बात भी समाजशास्त्रियों ने की हैं) तो दूसरी तरफ कम्प्यूटर एवम् तकनीक से प्रभावित आधुनिक और उत्तर-आधुनिक लोग भी हैं, इन दोनों के बीच सबसे अधिक आबादी उन लोगों की है, जो आज भी मध्यकाल के तमाम रूढ़िवादी रीति-रिवाजों को ओढ़े हुए हैं, और तीनों समुदायों में नारी के लिए अलग-अलग मिथक हैं, और हरेक मिथक अपने समुदाय में नारी की स्थिति उसकी पीड़ा व मुक्ति के उसके संघर्ष को दर्शाते हैं।

References

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Published

30-09-2017

How to Cite

Suman Bala. (2017). समाज में स्त्री: संस्थाएँ, मान्यताएँ और मूल्य, परम्परा और नई चेतना का द्वन्द, स्त्री का राजनीतिक अस्तित्व. International Journal for Research Publication and Seminar, 8(7), 105–110. Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1168

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Original Research Article