समकालीन हिन्दी कविता में संबंधः नवीन संतुलन

Authors

  • डा0 राममेहर सह-प्रोफेसर, हिन्दी-विभाग छोटूराम किसान स्नातकोत्तर ,महाविद्यालय,जीन्द

Keywords:

मनुष्य की सामाजिकता, प्रथाओं

Abstract

सभ्यता के विकास का सूत्र मनुष्य की सामाजिकता से जुड़ा हुआ है। समाज केवल मानव समूह का नाम नहीं है। जब तक विशिष्ट मानव-समूह किन्हीं अन्तः सूत्रों द्वारा परस्पर जुड़ा नहीं होता, उसे समाज कहना उचित नहीं है। समाजशास्त्रियों के अनुसार किसी समाज की विशिष्टता उसकी प्रथाओं, प्रणालियों, सत्ता और सहयोग के रूपों, विभाजन के आधारों, मानव व्यवहार के विधि-निषेधों में रहती है। समाज निरन्तर परिवर्तनशील रहता है और उसके घटकों को जोड़े रखने वाले सम्बन्ध भी जटिल होते हैं। यों तो प्रत्येक संस्कृति में इन संबंधों की रूपरेखा विशिष्ट होती है, किन्तु अन्ततः मानव हृदय सर्वत्र एक है, इसलिए संबंधों की पारस्परिकता और उनमें अन्तर्निहित सौहार्द और विश्वास बहुत कुछ एक रूप ही है। यह हम पारिवारिक संबंधों की चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि उनका आयाम स्वतंत्र विश्लेषण की अपेक्षा रखता है। यहाँ मुख्यतः उन सूत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिनसे सामाजिक परिप्रेक्ष्य में कोई सार्थक मानवीय संबंध जुड़ता है, मैत्री, कृतज्ञता, सौहार्द, सहयोग, विश्वास, आत्मीयता, स्नेह, सौजन्य, आतिथ्य आदि कुछ ऐसे ही सूत्र हैं।

References

कुंवर नारायण: परिवेश हम तुम, पृ. 63

अज्ञेयः कितनी नावों में कितनी पार, पृ. 11, 12.

कीर्ति चैधरीः तार सप्तक (सं. अज्ञेय) पृ. 59

किरण जैनः स्वर परिवेश कं., पृ. 11

प्रारम्भ (सं. जगदीश चतुर्वेदी), पृ. 25

रवीन्द्रनाथ त्यागीः आदिम राग, पृ. 30

केशवचन्द्र शर्माः वीणापाणि के कम्पाउण्ड में, पृ.65

वीरेन्द्र कुमार जैनः अनागता की आँखे, पृ.़ 62, 63

कैलाश वाजपेयीः संक्रान्त, पृ. 69, 65

कविताएं 1965 (सं. अजित कुमार, विश्वनाथ त्रिपाठी) पृ. 223

तीसरा सरतक: (सं. अज्ञेय) पृ. 61

प्रारम्भः (सं. जगदीश चतुर्वेदीः नये काव्य की भूमिका), पृ. 9

प्रभाकर माचवेः मेपल, पृ.30

कविताएं 1965 (सं. अजित कुमार, विश्वनाथ त्रिपाठी) पृ. 293

. पद्यधर त्रिपाठी: नयी कविता (अंक-8), पृ. 98

-17. मुक्तिबोध: चाँद का मुँह टेढ़ा है, पृ. 6, 146

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Published

30-04-2015

How to Cite

डा0 राममेहर. (2015). समकालीन हिन्दी कविता में संबंधः नवीन संतुलन. International Journal for Research Publication and Seminar, 6(1), 39–47. Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/71

Issue

Section

Original Research Article