आधुनिक हिंदी साहित्य में यथार्थवाद की प्रवृत्ति

Authors

  • Dr. Bimal Malik Assistant Professor Dept. Of Hindi, CRM Jat College, Hisar

DOI:

https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i1.1656

Keywords:

यथार्थवाद, हिंदी साहित्य

Abstract

यह शोधपत्र आधुनिक हिंदी साहित्य में यथार्थवाद की प्रवृत्ति का विश्लेषण करता है। स्वतंत्रता आंदोलन, सामाजिक असमानता, और आर्थिक समस्याओं ने हिंदी साहित्य को एक नई दृष्टि दी। प्रेमचंद, रेणु, और निर्मल वर्मा जैसे साहित्यकारों ने यथार्थ को अपने लेखन का केंद्र बनाया। इस शोध में इन लेखकों के योगदान तथा यथार्थवाद की सामाजिक उपयोगिता पर विचार किया गया है। आधुनिक हिंदी साहित्य में यथार्थवाद एक महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रवृत्ति है, जो विशेष रूप से 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विकसित हुई। यह प्रवृत्ति समाज, जीवन, व्यक्ति और उनके संघर्षों को वास्तविक और ठोस रूप में प्रस्तुत करने पर बल देती है। यथार्थवाद के अंतर्गत लेखक कल्पनाओं और आदर्शों से हटकर जीवन की कठोर सच्चाइयों, सामाजिक विषमताओं, आर्थिक संघर्षों, राजनीतिक अन्याय और नैतिक द्वंद्वों को चित्रित करते हैं।

References

प्रेमचंद – गोदान, गबन

रेणु – मैला आँचल

निर्मल वर्मा – वे दिन

डॉ. नामवर सिंह – हिंदी के नए प्रतिमान

डॉ. रामविलास शर्मा – भारतीय साहित्य की भूमिका

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Published

29-01-2024

How to Cite

Dr. Bimal Malik. (2024). आधुनिक हिंदी साहित्य में यथार्थवाद की प्रवृत्ति. International Journal for Research Publication and Seminar, 15(1), 314–317. https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i1.1656