वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप

Authors

  • मुकेश कुमार मंडल शोधार्थी योग विज्ञान विभाग, पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार
  • आदित्य प्रकाश सिंह शोधार्थी योग विज्ञान विभाग, पतंजलि विश्वविद्यालय हरिद्वार

DOI:

https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i1.1422

Keywords:

वाल्मीकि रामायण, ब्रह्मचर्य, योग, ग्रन्थ

Abstract

वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप एक व्यापक और गहन विषय है जो प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति में नैतिक और आध्यात्मिक अनुशासन के महत्व को प्रकट करता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) की ओर गतिशील होना और इसमें शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक संयम शामिल होता है। रामायण में ब्रह्मचर्य के स्वरूप को प्रमुख पात्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, माता सीता और हनुमान। वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरे अर्थ रखता है। यह आत्मसंयम, त्याग, सेवा, और धर्म के प्रति अटल समर्पण का प्रतीक है। राम, लक्ष्मण, और हनुमान के जीवन और उनके कार्यों के माध्यम से ब्रह्मचर्य का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है, जो आज भी समाज में नैतिकता और अनुशासन की महत्वपूर्णता को रेखांकित करता है। इस प्रकार, वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप न केवल प्राचीन भारतीय समाज के नैतिक और धार्मिक आदर्शों को उजागर करता है, बल्कि यह वर्तमान समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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Published

29-01-2024

How to Cite

मुकेश कुमार मंडल, & आदित्य प्रकाश सिंह. (2024). वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप. International Journal for Research Publication and Seminar, 15(1), 178–182. https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i1.1422