वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप
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https://doi.org/10.36676/jrps.v15.i1.1422Keywords:
वाल्मीकि रामायण, ब्रह्मचर्य, योग, ग्रन्थAbstract
वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप एक व्यापक और गहन विषय है जो प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति में नैतिक और आध्यात्मिक अनुशासन के महत्व को प्रकट करता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ होता है ब्रह्म (ईश्वर) की ओर गतिशील होना और इसमें शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक संयम शामिल होता है। रामायण में ब्रह्मचर्य के स्वरूप को प्रमुख पात्रों के माध्यम से समझा जा सकता है। भगवान राम, लक्ष्मण, भरत, माता सीता और हनुमान। वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरे अर्थ रखता है। यह आत्मसंयम, त्याग, सेवा, और धर्म के प्रति अटल समर्पण का प्रतीक है। राम, लक्ष्मण, और हनुमान के जीवन और उनके कार्यों के माध्यम से ब्रह्मचर्य का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है, जो आज भी समाज में नैतिकता और अनुशासन की महत्वपूर्णता को रेखांकित करता है। इस प्रकार, वाल्मीकि रामायण में ब्रह्मचर्य का स्वरूप न केवल प्राचीन भारतीय समाज के नैतिक और धार्मिक आदर्शों को उजागर करता है, बल्कि यह वर्तमान समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
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