मध्यकालीन संत साहित्य और दलित चेतना

Authors

  • पूजा हतवारी शोधार्थी , हिंदी हवभाग , डॉ भीमराव आंबेडकर हवश्वहवद्यालय, आगरा
  • डॉ. ग ंजन एसोहसएट प्रोफेसर, बी॰डी॰के॰एम॰वी॰ , हिंदी हवभाग , डॉ भीमराव आंबेडकर हवश्वहवद्यालय, आगरा

Keywords:

फलस्वरुप, समरसता, धार्मिक, दलित चेतना, समाज सुधार, सामाजिक, मध्यकाल

Abstract

भारतीय जीवन में ऐसा समय आया जब सामाजिक ,सांस्कृतिक ,धार्मिक व राजनीतिक परिवतिनों के फलस्वरुप समाज में विघटन एवं विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो गई र्थी ,जिसने सामाजिक समरसता एवम् लोगों की एकात्म भावनाओं को ठेस पहंचाया। अराजकता एवं अव्यवस्र्था की स्थिति  ने सम्पूर्ण  सामाजिक परिदृश्य को ही  बदल कर रख दिया। यह  काल मध्यकाल का था  और इसी काल में निर्गुण कवितों  ने समाज सुधार का बीडा उठाया। 

References

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कबीर ग्रंर्थावली,श्यामस ंदर दास

कबीर ग्रंर्थावली,श्यामस ंदर दास

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Published

31-12-2019

How to Cite

पूजा हतवारी, & डॉ. ग ंजन. (2019). मध्यकालीन संत साहित्य और दलित चेतना. International Journal for Research Publication and Seminar, 10(4), 74–78. Retrieved from https://jrps.shodhsagar.com/index.php/j/article/view/1308

Issue

Section

Original Research Article