छायावाद पर गांधी जी का प्रभाव
Keywords:
सुभद्राकुमारी, अनवृत, आन्दोलन, सांस्कृति, साम्राज्यवाद, स्वाधीनताAbstract
हिन्दी साहित्य के इतिहास में खड़ी बोली हिन्दी का स्वर्णकाल, छायावाद है। द्विवेदी युगीन साहित्य की इतिवृत्तात्मकता को छोड़कर लाक्षणिकता प्रधान कविता की रचना हुई। इस काल में एक तरफ तो छायावादीपन की कविताएं सृजित की गई वहीं दूसरी स्वच्छन्द राष्ट्रीय सांस्कृतिक धारा जिसमें माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, राजनरेश त्रिपाठी प्रमुख हैं। बच्चन, सुभद्राकुमारी चैहान, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ राष्ट्रीयता के साथ-साथ प्रणय, वात्सल्य भाव की कविता भी रची। छायावदी चतुष्टय में निराला, प्रसाद, पंत और महादेवी वर्मा की सृजना आती है। इनकी रचनाओं में छायावाद की समस्त प्रवृत्तियां लक्षित हैं। डाॅ. नन्द किशोर नवल के अनुसार छायावाद को दो महायुद्धों के बीच की कविता भी कहा गया है। यह कहना अत्यंत युक्ति संगत है, वशर्ते इसके पीछे स्थित गंतव्य को समझा जाये। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किंचित विस्तार से यह बतलाया है कि छायावाद की प्रमुख प्रेरणा प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामों से आई थी। इस युद्ध ने हिन्दी के नवशिक्षित युवकों पर साम्राज्यवाद के ध्वंसक रूप को पूर्णतः अनवृत कर उनमें उपनिवेश विरोधी चेतना की प्रवल तरंग उत्पन्न कर दी। छायावाद उनके ‘वंधनमुक्त चित्त’ की ही अभिव्यक्ति है, द्विवेदी जी ने सही कहा था कि 1920 में गांधी जी द्वारा जो असहयोग आन्दोलन आहुत किया गया था वह मात्र राजनीतिक आन्दोलन न होकर एक महान सांस्कृति आन्दोलन था। उस दौर में भारतीय समाज में स्वाधीनता की आकांक्षा, राष्ट्र, प्रेम, अहिंसा, गांधीवाद सदृश मूल्य व्याप्त थे। देश में अंग्रेजी शासन के प्रति आक्रोश था और अंग्रेजी शासन से मुक्ति के प्रयास कठोर थे।
References
आर. गुप्ता यू.जी.सी. (हिन्दी)
आधुनिकता: अवधारणा और उसके उदय की पृष्टभूमि
डाॅ. अशोक तिवारी आधुनिक काव्य (छायावाद)
डाॅ. अशोक तिवारी आधुनिक काव्य (छायावाद)
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