प्राचीन भारतीय वाांग्मय में शिक्षा : सन्दर्भ एवं निहितार्थ
Keywords:
भारतीय, इक्कीसवीं, विज्ञानी , भारतीय दर्शनAbstract
आज जबकि इक्कीसवीं सदी में सम्पूर्ण विश्व में ज्ञान, विज्ञान, संचार तकनीक , अंतररिक्ष ज्ञान अपने चरमोत्कर्ष पर है| शैक्संषिक स्थानों से ले कर सम्पूर्ण समाज में युवाओं में कुंठा, निराशा, हताशा, अवसाद व्याप्त है | ऐसे में युवा नशे और अपराध के साथ ही आतंक में लिप्त हो कर कुपथ गामी बन जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं | भौकतिता िी अंधी में हम वेदों, उपकनर्दों, गीता िे वचनों िो भूलते जा रहे हैं फलस्वरूप सम्पूर्ण जगत में घोर िलह, ईर्षयाण, आतंि व्याप्त है| सवण श्रेष्ट बनने िी होड़ मची हुई है, चाहे मनुर्षयता िी बकल देिर ही| महकर्ण दयानंद और स्वामी कववेिानंद जैसे युगपुरुर्ों ने शायद इसीकलए वेदों और उपकनर्दों िे अध्ययन पर जोर कदया था | कजससे मनुर्षयता बची रहे | कवकभन्न भारतीय कशक्षा आयोगों व सकमकतयों िे प्रकतवेदनों, रार्षरीय पाठ्यचयाण िी रूपरेखा और रार्षरीय कशक्षा नीकत में भी संस्िृत साकहत्य और प्राचीन भारतीय कशक्षा पर फोिस किया है | अस्तु इस शोध पत्र िे माध्यम से प्राचीन भारतीय वांग्मय में सकन्नकहत कशक्षा एवं उसिे स्वरुप िो पुनः उद्गाकित िरने िा प्रयास किया गया है, कजससे युवा और कवद्माथी पुस्तिीय कशक्षा िे अकतररक्त कशक्षा िा वास्तकवि अथण ग्रहर् िर सिें और स्वयम िो अनुशाकसत िर रार्षर कनमाणर् में सहभागी बन सिें |
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